भला है यूँ ही रो जाना कभी-कभी
मुँह का इस तरह धो जाना कभी-कभी
जिस भीड़ से हमेशा डर लगता है मुझे
भाता है उसमें खो जाना कभी-कभी
ये बात सच है कि सादगी ही भली है
सजना चँदा-सा हो जाना कभी-कभी
सुबह होते ही उठ जाना अच्छा है मगर
क्या हुआ दिन तक सो जाना कभी-कभी
-मनोहर चमोली ‘मनु’
एक झटके में आपकी नयी और पुरानी कई गज़लें पढ़ गया...बहुत ही दिल से लिखते हैं आप...बहुत अच्छा लगा आपकी ब्लॉग पर आ कर....
जवाब देंहटाएंaapka behad aabhaar ummid hai ki aate rahenge our houslaa bdaate rhaenge mera..aapko naman mera..
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