27 अप्रैल 2012

मुझको अगर कमाना होता


थोड़ा और सयाना होता
मुझको अगर कमाना होता

उसका कोई कद जो होता

उसके साथ ज़माना होता

मैं भी जे़ब में दरपन रखता

चेहरा जो सजाना होता

 
   मैं तो नदिया का पानी हूँ
सागर बनता ख़ारा होता

 
मैं फिर ग़ज़लें क्यों कहता जो
इश्क अगर छिपाना होता


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-मनोहर चमोली ‘मनु’
-24. 4. 2012. गोधूलि की बेला में.


4 टिप्‍पणियां:

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